धंधा है, गंदा है, मजबूरी है ! / लालित्य ललित
कॉलगर्ल का पेशा करना
मालती या कल्पना का
शौक़ नहीं
मजबूरी है
कितने ही नापसंद
बूढ़ी उमर के लोगों को
अपनी सवारी कराना
उन्हें कतई पसंद नहीं है
मगर
घर में
लकवे से पीड़ित पिता की
महंगी दवाइयों के बिल
छुटकी की मेडिकल की -
पढ़ाई
घरेलू खचऱ्ें में बढ़ोतरी
जैसे
तमाम कारण हैं कृ.
मां-बाप की देखभाल
बहन की शिक्षा
आवारा भाई का
घर के प्रति लापरवाह होना
कहीं न कहीं
मालती को विवश करता है
ख़ुद को बाज़ार में
उतारने के लिए
ऐसा नहीं कि नौकरी सें ही
सारा ख़र्च पूरा हो जाए
बड़ा परिवार
सबकी महत्वकांक्षाएं
और परिवार के भविष्य को
शीर्ष पर पहुंचाने का सपना
यदि देखना है
तो धंधे में उतरना ही पड़ेगा
‘‘चल-चल भोत हो गया
यह रोना-पीटना बंद कर
मेरी जान
आज पांच कस्टमर लाई
हूं’’
सिगरेट का धुआं छोड़ती
कल्पना ने
मादक अंगड़ाई लेते हुए
चुटकी ली !
अपने को पुनः प्रस्तुत करने के
क्रम में
मालती के हिस्से में आए
तोंदू, गठीले, मुंह बिचकाते
बदबू मारते व्यापारी
पैसे के पुजारी
जिन्हें केवल गरम
गोश्त की जरूरत
है चाहे वह गोश्त
मालती का हो
सुनयना का हो
रुबीना का हो
या
शिखा का हो
धंधा निबटाती कल्पना
अपना हिस्सा ले
शेष रक़म मालती को
थमा देती है
थकी-टूटी मालती
घर पहुंच कर
फिर से जी उठती है
उसकी नियति है यही
क्या उसको ही टूटना है
आख़िर कब तक
टूटती रहेंगी !
मालती
रुबीना, सुनयना
शिखा या इन-जैसी
असंख्य लड़कियां
कहीं से भी जवाब
या
प्रतिक्रिया नहीं आती
सन्नाटा पसर जाता है
कुत्ता तेज आवाज़ में
भौंकता है
बाहर बारिश शुरू हो -
गई है
परदे से झांकती
मालती की
बैचेनी कोई नहीं
जान पाया
कोई नहीं पढ़ पाया !