धंधा / नाज़िम हिक़मत
जब सूरज की पहली किरणें पड़ती हैं मेरे बैल की सींगों पर,
खेत जोत रहा होता हूँ मैं सब्र और शान के साथ।
प्रेम से भरी और नम होती है धरती मेरे नंगे पाँवों के तले।
चमकती हैं मेरी बाहों की मछलियाँ,
दोपहर तलक मैं पीटता हूँ लोहा —
लाल रंग का हो जाता है अन्धेरा।
दोपहर की गरमी में तोड़ता हूँ जैतून,
उसकी पत्तियाँ दुनिया में सबसे ख़ूबसूरत हरे रंग की :
सर से पाँव तलक नहा उठता हूँ रोशनी में।
हर शाम बिला नागा आता है कोई मेहमान,
खुला रहता है मेरा दरवाज़ा
सारे गीतों के लिए।
रात में, मैं घुसता हूँ घुटनों तक पानी में,
समुन्दर से बाहर खींचता हूँ जाल :
मछलियाँ और सितारे उलझे हुए आपस में।
इस तरह मैं जवाबदेह हूँ
दुनिया के हालात के लिए :
अवाम और धरती, अँधेरे और रोशनी के लिए।
तो तुम देख सकती हो, मैं गले तक डूबा हुआ हूँ काम में,
ख़ामोश रहो प्रिय, समझो तो सही
बहुत मसरूफ़ हूँ तुम्हारे प्यार में।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल