भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धड़कन / आनंद कुमार द्विवेदी
Kavita Kosh से
मन करता है नाचने का
पाकर तुम्हारी आहट,
मुरझा जाता है मन
जरा ही देर में
तुम्हारे ओझल होते ही,
तुम कहते हो
मैं एक सा क्यों नहीं रहता हमेशा,
मैं कहता हूँ
तुम पास क्यों नहीं रहते हमेशा,
हमेशा ही घटती-बढ़ती धडकनों के बीच
कोई कैसे रहे
एक सा !