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धड़का था दिल कि प्यार का मौसम गुज़र गया / निश्तर ख़ानक़ाही

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धड़का था दिल की प्यार का मौसम गुज़र गया ।
हम डूबने चले थे कि दरिया उतर गया ।

तुमसे भी जब निशात का इक पल न मिल सका
मैं कासा-ए-सवाल[1] लिए दर-बदर गया ।

भूले से कल जो आइना देखा तो ज़ेहन में
इक मुन्हदिम[2] मकान का नक़्शा उभर गया ।

तेज़ आँधियों में पाँव ज़मीं पर न टिक सके
आख़िर को मैं ग़ुबार की सूरत बिखर गया ।

गहरा सुकूत[3], रात की तन्हाइयाँ, खंडर
ऐसे में अपने आपको देखा तो डर गया ।

कहता किसी से क्या कि कहाँ घूमता फिरा
सब लोग सो गए तो मैं चुपके से घर गया ।

शब्दार्थ:

   1. ↑ सवाल का प्याला
   2. ↑ गिरा हुआ
   3. ↑ ख़ामोशी