धतूरो काम आवेला / विनय राय ‘बबुरंग’
अपने में जनि करऽ झगड़ा लड़ाई रे
धतूरो काम आवेला, गउवाँ के भाई रे।।
भइया ना रहिहें त सोना के उगाई
बहिनी ना रहिहें त राखी ना बन्हाई
केतने सुहागिन क सुहाग लुट जाई रे
धतूरो काम आवेला, गउवाँ के भाई रे।।
कंस बनि लेइ जाई कोखी से ललनवा
डूबि जाई खुनवां से सगरो अंगनवा
घरवा के सुगिया कँवार रहि जाई रे
धतूरो काम आवेला, गउवाँ के भाई रे।।
पत्तल में छेद कइल इहे जेकर नीति बा
इहे बा कारन नाहीं हमनी में प्रीति बा
आगे पीछे सोचीं भइया आगि के बुझाई रे
धतूरो काम आवेला, गउवाँ के भाई रे।।
खेतिये ना होई त जिनिगी डूबि जाई
आधार बाटे खेतिये जिनिगिया के भाई
ए चमचन से दूर होके एकता बनाईं रे
धतूरो काम आवेला, गउवाँ के भाई रे।।
आवऽ हो अलगू भइया आवऽ हो मंगरू भाई
आवऽ हो जुम्मन मियां एक होई जाईं
भेद-भाव भूत के हम दुनियां से भगाईं रे
धतूरो काम आवेला, गउवाँ के भाई रे।।
गली-गली गांव-गांव होखे प्रेमचारा
लुगरी टिकेले जइसे रखले किनारा
बनऽ इन्सान जनि बनऽ कसाई रे
धतूरो काम आवेला, गउवाँ के भाई रे।।