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धत्त तेरे की / अलका वर्मा

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मंदिर बने दस लाख की
स्थापना हुई साठ लाख की
सैकडो कमरे बनते देव का
गरीब को सोने का घर नहीं
 धत्त तेरे की।

सारे फैसले ऊपर होते
हम सिर्फपालन करते
पाप पुण्य भी ऊपर लिखता
सारी क्रेडिट हम पर जाता।
 धत्त तेरे की।
ईमानदारी से हम चलते

जीवन भर मेहनत करते
 ठीक से घर नहीं चला पाते
बेईमानी से तरक्की पाते।
 धत्त तेरे की।
मेहनत से सुन्दर घर बना
खून पसीने से उसे सजाया
प्यार के धागे से उसे पिरोया
तुफानो ने नेस्तानुवुद किया
 धत्त तेरे की।
कवि मंच की अजब कहानी
जित कवि तत श्रोता बानी।
मंच पकडे तो छोडता नहीं
आपसी लडाई में नहीं है सानी।
 धत्त तेरे की।
नेता की तो बात छोडो
उसकी नहीं है जात छोडो
दलबदलू तो फितरत उसकी
चापलूस नशा की बात छोडो।
 धत्त तेरे की।
औरत की अजब कहानी
बच्ची सम्बुढी बेपानी।
कितना भी काम करे वह
फिरमी वह न एक समानी।
 धत् तेरे की