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धनतन्त्र का क्रम-विकास / मलय रायचौधुरी / सुलोचना वर्मा

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कल रात बगल से कब उठ गई
चुपचाप अलमारी तोड़कर कौनसा एसिड
गटागट पीकर मर रही हो अब
उपजिह्वा गल चुकी है दोनों गालों में हैं छेद
मसूढ़े और दाँत बहते हुए दिख रहे हैं चिपचिपे तरल में
गाढ़ा झाग, घुटने में हो रहा है ऐंठन से दर्द
बाल अस्त-व्यस्त, बनारसी साड़ी साया
खून से लथपथ, मुठ्ठी में कजरौटा
सोले से बना मुकुट रक्त से सना रखा है एक ओर
कैसे कर पाई सहन, नहीं जान पाया
नहीं सुन पाया कोई दबी हुई चीत्कार
तो क्यूँ सहमति दी थी गर्दन हिलाकर
मैं चाहता हूँ जैसे भी हो, तुम बच जाओ
समग्र जीवन रहो कथाहीन होकर

मूल बंगला से अनुवाद : सुलोचना वर्मा
लीजिए, अब मूल बंगला में यही कविता पढ़िए
                ধনতন্ত্রের ক্রমবিকাশ

শেষরাতে পাশ থেকে কখন উঠেছ
চুপচাপ আলমারি ভেঙে কী অ্যাসিড
ঢকঢক করে গিলে মরছ এখন
আলজিভ খসে গেছে দুগালে কোটর
মাড়িদাঁত দেখা যায় কষেতে বইছে
গাঢ় ফেনা হাঁটুতে ধরেছে খিঁচ ব্যথা
চুল আলুথালু বেনারসি শাড়ি শায়া
রক্তে জবজবে মুঠোতে কাজললতা
শোলার মুকুট রক্ত-মাখা একপাশে
কী করে করেছ সহ্য জানতে পারিনি
শুনতে পাইনি কোনো চাপা চীৎকার
তবে কেন সায় দিয়েছিলে ঘাড় নেড়ে
আমি চাই যেকরেই হোক বেঁচে ওঠো
সমগ্র জীবন থাকো কথাহীন হয়ে