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धनिया धने से भर जाई / सुभाष चंद "रसिया"

खेतवा कि धनवा के देखी बिहसे मनवा ना।
हे धनिया धने से भर जाईसगरी अंगनवा ना॥

सोना चांदी हीरा मोती सभे ऊगाइबे खेती में।
सभे ऊगाइबे खेती में।
चालीसवाँ हिस्सा लगाइबे जन-जन की हम नेकी में।
जन-जन की हम नेकी में।
समता के हर बाग में रोजे ऊगे सुमनवा ना।
हे धनिया धने से भर जाई आज सगरी अंगनवा ना॥

जन-जन में सदभाव हो जाई नेवता देबे पितर के।
हो नेवता देबे पितर के।
दुखीयन के दुःख दूर हो जाई, पीर निकलिहे भीतर के।
पीर निकलिहे भीतर के।
माया कि हर कड़ी के तजि द बिहसे मनवा ना॥
हे धनिया धने से भर जाई आज सगरी अंगनवा ना॥

होली दिवाली रोजे बाटे, घरमे जब सदभाव बा।
घर में जब सदभाव बा।
रोटी के हर टुकड़ा मे, जीवन के हर भाव बा।
जीवन के हर भाव बा।
रसिया कि साधिया के पुराद, हुलसे मनवा ना
हे धनिया धने से भर जाई आज सगरी अंगनवा ना॥