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धनी पूछहि त का मैं बताहूँ / पीसी लाल यादव

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गँड़ई-मड़ई म झूलत त रहिचुली
नाक के गँवागे मोर सोनहा फुली
खोजत-खोजत मैं होगेंव हलाकान
धक-धक करे मोर जीवरा परान
धनी मोर पूछहि त का मैं बताहूँ?

सास गरी दीही, ससुर खिसियाही
तेखर ले छोटकी ननँद लिगरी लगाही।

सोन के गँवई ह गोठ नोहे मामुली
धनी मोर पूछहि त का मैं बताहूँ?

देरानी-जेठानी मारही मोला ताना
डोकरी खिसियाही पुरोही मोर ठिकाना।

चेत-सुरता राहय नहीं हत रे बकर भुली
धनी मोर पूछहि त का मैं बताहूँ?

मोला हे भरोसा मोर धनी पतियाही
रिस देखा के थोरिक फेर मया देखाही।

मईके के चिनहा फूली नजरें नजर झुली
धनी मोर पूछहि त का मैं बताहूँ?