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धन्यवाद का गीत / प्रकाश

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मैं भाषा में होकर
केवल तुतलाता था

भाषा मुझ पर
बाहर से
धूल-सी झरती थी
उसमें गुम होकर
विरल हुई वाणी से
मैं अपनी कथा कहकर
पछताता था
कथा पर भी धूल
झरती रहती थी

मेरी तुतलाहट
बढ़ती जाती थी
मैं धीरे-धीरे एक दिन
गूँगा हो जाता था

गूँगा कण्ठ प्रार्थना में
धन्यवाद का गीत गाता था !