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धन्य-धन्य मची गेलै / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो
Kavita Kosh से
कालतक छेलै जे तनलोॅ अभिमान सें
कालतक छेलै जे अकड़लोॅ आन सें
विवेक के गंगा में नहैलै तनियें टा
पनगरोॅ होय उठलै आदमी के मान सें।
झुलसै के डर-भय सें फूल कली मुरझैलोॅ
मुस्कैलै हुलसी केॅ राहत सें मान सें
लहरैलै लहर एक धरती हिलकोरी केॅ
सिहरी उठलै सरंग पंछी के गान सें।
धन्य-धन्य मची गेलै गोरबाचोप-रीगन के
भरी गेलै घाट-बाट लव्वोॅ अख्यान सें
असरा के सुरुज देव उगलै पछीमोॅ में
पूर्बे निरजासै छै एकटक ध्यान सें।
काना-फूसी हुअेॅ लागलै निराशा के धोली में
काँपी उठलै अन्हार चाँदनी के भान सें
सरङोॅ के गोदी में कुछ उदास तारा छै
ओकर्हौ छै असरा विवेकी इन्सान सें।