भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धब्बे / शशि सहगल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हादसे से भरी ज़िन्दगी में
परेशान है इक हादसा,
तुम्हारे जाने के बाद जब
शहर खाली हो गया था
सूनी इमारतों में
तुम्हारी हँसी की गूँज
धुएँ के धब्बे-सी
दिखाई देती रही
बहुत सालों बाद भी।