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धरतीमाता-भारतमाता / अरुणाभ सौरभ

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(लोहिया जी से क्षमायाचना सहित)

एक दूसरे को काटकर बढ़ने के बीच
मरघट से लाए नरकंकालों के ढेर
लम्बी लाइन अस्पताल में
बीमार, दमघोंटू दिल्ली में
रेडियो, टीवी, अख़बार की
बिकी हुई ख़बरों के बीच
गौरव गान के बीच
कहीं धीमी रफ़्तार में रेंगती गाड़ियाँ
कहीं तेज़ रफ़्तार
इनर सर्किल की चकमक
आउटर सर्किल फ़ुटपाथ पर
सपरिवार रहते असंख्य बेघर लोग
प्लास्टिक-तिरपाल में
कहीं झुग्गी-झोपड़ी में

नॉर्थ एवेन्यू, साउथ एवेन्यू
लोकसभा-राज्यसभा
या,
सफ़र करते अनथक मेट्रो / बस यात्री
किसी को मालूम है
इन बेघरों का नाम और अता-पता-नागरिकता ????
तरह-तरह की बातें और सन्देह
ये बंगलादेशी हैं, नहीं बिहारी हैं
मुसलमान हैं, नहीं दलित हैं
ये भीख माँगते हैं
इनका बहुत बड़ा गैंग है
ये भीख के पैसे से खरीदते हैं ड्रग्स
और महिलाएँ अपनी गोद में हमेशा सोए हुए
बच्चे को लेकर माँगती है भीख
बच्चा रोता नहीं कभी
जब भी रोता है लोग कहते हैं
माँ नशे की सुई चुभो देती है

कुछ उसी फ़ुटपाथ से सटे ठेके पर
दारू बोतल हटाने
बिखरे चखने पर झाड़ू लगाते
इसी फ़ुटपाथ के टूटे नल पर
स्नान करती महिलाओं के अधखुले अंग
देखकर जागता है हमारे भीतर का
ऋषि वात्स्यासन और कामाध्यात्म

तब जबकि मेरा देश आर्थिक विकास की नई ऊँचाईयाँ छू रहा है
तब जबकि मेरा देश सम्पूर्ण सांस्कृतिक राष्ट्र बनने की तैयारी में है
तब जबकि मेरा देश हर सच को झूठ और झूठ को सच बनाने में व्यस्त है
तब जबकि मेरा देश हर राजनेता को उम्मीद भरी निगाह से देखता है
तब जबकि मेरा देश सभ्यता की नई कथा कहेगा
देश के सभ्य नागरिकों चिपक जाओ टेलीविज़न से
कि समूचा दिन काटकर दफ़्तर से आकर सुकून की तलाश में
बदलते रहो चैनल
झूठ-सच मिली खबरों के आधार पर
बनाते रहो धारणा
उन्मादी हवा की चपेट में तुम
भीड़ प्रायोजित हिंसा को सही-गलत ठहराते
किसानों, नौजवानों की आत्महत्या का मूल कारण तक नहीं जानते

मित्रो-सभासदो-मंत्रियो
बहुत अन्तर है आरबीआई गवर्नर और अरुणाभ सौरभ के भारत में
बहुत अन्तर है
देश और देस में

नागरिक सभ्यता की माँग है कि
सिल दिए जाएँ बोलनेवाले होठ
हर अनहोनी से पहले
मेरे देश की प्यारी लड़कियो
लोहे के मुखौटे से ढक लो चेहरा
लोहे के हिजाब में लपेट लो देह
कि किसी हमलावर के तेजाब से ना झुलसे
कि दरिन्दों के हाथ ना नुचे तुम्हारे माँस का लोथड़ा
आग होना है तुम्हें कि झुलस जाए अनचाही छुवन से अपरिचित हाथ

कुछ लोग गला फाड़कर चीख़ रहे हैं कि फ़र्क मिट गया है
मनु के विधान और अम्बेडकर के संविधान में
और हर राज्य में सताए जा रहे हैं अम्बेडकर
असंख्य मनुओं द्वारा
रोज़ नई व्याख्या — रोज़ नया अर्थ
रोज़ नया राष्ट्रवाद — रोज़ नया राष्ट्रद्रोह

ओ भारतमाता !
तुम्हीं कहो, किससे पूछूँ
तुम्हारी परिभाषा
किस औरत की आत्मा में जा छिपी हो
ग्रामवासिनी माता
दिल्ली में रहती हो कि चिल्का में
दलाल स्ट्रीट में / नन्दन कानन में
बॉलीबुड में / नोएडा फ़िल्म सिटी में
मणिपुर में / दातेवाड़ा में
सिंगूर में, सेवाग्राम में या हम्पी मे
सम्राट हर्षवर्धन की प्रेमिका हो
या सम्राट वृहद्रथ की ब्याहता
पुष्यमित्र शुंग की पत्नी
या राजेन्द्र चोल की
यत्र-तत्र-सर्वत्र
तुम्हीं हो भारतमाता ??
क्या सचमुच मेरी माँ तुम्हें
बौद्धों का कटा हुआ मस्तक प्रिय है
या पारिजात पुष्प या कौस्तुभ भूषण

रात के तीसरे पहर में
हर घर में जाग रही सुबक-सुबक रोती हुई भारतमाता
तुम्हें मेरे पिता ने / मेरे भाइयों ने
डाँटा है-पीटा है, प्रताड़ित किया है
कवि-कलाकार-चिन्तक मारे जा रहे
कलाहीन होकर आर्त्तनाद करती हुई
लुटी-पिटी-बिखरी
धरती माता, मेरी माँ ! आओ,

मन्दिरों की भित्तियों, गवाक्षों-गर्भ गुहाओं से बाहर
कि सेवालाल के घर दिवाली की मिठाई
और ज़ाहिद के घर ईद की सेवइयाँ
ठण्डी हो रही
आओ कि रामरतिया की थाली में भात बनकर छा जाओ
परबतिया की दाल पर तड़का लगा जाओ
आ ही जाओ माता
कि हत्या और आत्महत्या से पहले
बेरोज़गार के घर
उम्मीदों के दीये जलाने हैं