भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धरती’र भासा / कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिण भासा री जड़ धरती में
बीं में हुसी मिठास,
बा भासा ही व्यक्त कर सकै
धरती रो हिंवलास,

जीव जिनावर पान फूल फळ
डूंगर समदर गांव,
माटी रो मन समझ घड़्या है
भासा अै सै नांव,

गाछ, पेड़, द्रुम, दरखत सै स्यूं
एक रूंख रो बाध,
पण धरती री बणगट सारू
अै सगळा संबोध,

कबिता, का’णी, लोक कथावां
गीत, निरत, चितराम,
जिसी जठै री कुदरत बीं रा
अै प्रतिमान ललाम,

रीत भांत, तेंवार, मानता
खान पान पैरान,
रितुआं री ईंच्छाया परगासै
भासा इस्यो विधान,

देह आतमा ज्यूं धरती रो
भासा स्यूं सम्बन्ध,
आं नै अलघा करणा चावै
बै मूरख मतिमंद !