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धरती अम्बर, चाँद, सितारे / छाया त्रिपाठी ओझा
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धरती,अम्बर, चाँद, सितारे
खफा-खफा लगते हैं सारे
नहीं बोलतीं आज हवाएँ
चुप चुप सी हैं सभी दिशाएँ
संदेशों की प्यारी पाती
पढ़कर अब हम किसे सुनाएँ
गुमसुम बैठे दिनकर प्यारे
खफा खफा लगते हैं सारे
धरती अम्बर चांद सितारे
दिवस लगे ज्यों सोया सोया
नदियों झरनों का मन खोया
इक कोने में पंख छिपाए
मन का मोर बैठ कर रोया
देख-देख खामोश नजारे
खफा खफा लगते हैं सारे
धरती अम्बर चांद सितारे
अंतस में संगीत नहीं अब
कोयल गाती गीत नहीं अब
दोनों आँखें अविरल बहतीं
मन है पर मनमीत नहीं अब
राह देखते साँझ सकारे
खफा खफा लगते हैं सारे
धरती अम्बर चांद सितार