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धरती का चीत्कार / पैट्रिस लुमुम्बा / राम शरण शर्मा 'मुंशी'

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सुना है तुमने
कभी
धरती का चीत्कार ?

सुना है तुमने
कभी
नारी का हाहाकार ?

देख़ा है तुमने
कभी
नई लाल कोंपल पर
                 कुलिश का प्रहार ?

देखा है तुमने
कभी
नन्हे शिशु पर
                पैशाचिक अत्याचार ?

देखा है तुमने कभी
संगीनों से
                 क्षत-विक्षत प्यार ?

देखा है तुमने
कभी
रक्त - आग - आँसुओं
                     का ज्वार ?

नहीं - नहीं
यह किसी की चीख़ नहीं !
आत्मा से निकला
एक ज़हर - बुझा तीर है !

नहीं
यह लुमुम्बा की पत्नी नहीं
कुचली गई
मानवता की पीर है !