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धरती का भी दिल होता है / साँझ सुरमयी / रंजना वर्मा

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धरती का भी दिल होता है॥
पाकर प्यार विहँस उठता है,
मिले उपेक्षा तो रोता है।
धरती का भी दिल होता है॥
उसके दिल का दर्द उभरता है पतझर में,
सूखी बंजर धरती की छाती फटती है।
प्यास तड़क उठती है जब सूखे अंतर में -
रोम रोम से बस पानी पानी रटती है॥
उमड़ा बादल ही उसके दुख को धोता है।
धरती का भी दिल होता है॥
खेत जोत कर करता छलनी भू का सीना,
सिर से बहकर पहुंच पाँव तक जाय पसीना।
गेहूं मक्का सरसों धान बीज उपजाता -
कष्ट उठा कर ही तो आता जीवन जीना।
वही काटता है खेतों में जो बोता है।
धरती का भी दिल होता है॥
उम्मीदों की फसल उगाया करता है जो ,
खून पसीना नित्य बहाया करता है जो।
स्वप्न हजारों नयन निलय में रहे पालता-
पर अभाव में दिवस बिताया करता है जो।
उसके दिल मे बहता भावों का सोता है।
धरती का भी दिल होता है॥
चना बाजरा मक्का बोये या बोये तरकारी
बिन बरखा है फसल सूखती ये कैसी लाचारी।
रूखी सूखी रोटी खा कर जीवन काटा करते
फटी रजाई अम्मा ओढ़े बिटिया रही कुँआरी।
सिर पर लदा कर्ज बेबस हरदम ढोता है।
धरती का भी दिल होता है॥