धरती को माँ कहते हो तो / रेनू द्विवेदी
धरती को माँ कहते हो तो,
सुन्दर इसे बनाओ!
सृष्टि संतुलित करने खातिर,
पर्यावरण बचाओ!
पेड़-पहाड़ अगर काटोगे,
भू-हो जाएगी बंजर!
आने वाली पीढ़ी को क्या,
दिखलाओगे यह मंजर!
हरियाली से जीवन सुंदर,
सबको यह समझाओ!
सृष्टि---
नदियाँ-झरने वृक्ष-लताएँ,
यह सब भू के आभूषण!
हरी-चुनर वसुधा पहने अब,
खूब करो वृक्षारोपण!
रंग-विरंगे फूलों से नित,
धरती को महकाओ!
सृष्टि---
जड़-चेतन में औषधियों का,
मिलता खूब खजाना है!
जंगल में मंगल रहने दो,
जीवन अगर बचाना है!
निश्छल प्रेम करो कुदरत से,
अपना फर्ज निभाओ!
सृष्टि---
बहुत हो चुका पतन धरा का,
अब तो तुम मानव जागो!
वायु भूमि जल पशु पक्षी को,
अब अपना साथी मानो!
कुदरत की सेवा है करना,
यह संकल्प उठाओ!
सृष्टि---