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धरती धान किसान / अरुण हरलीवाल
Kavita Kosh से
सुन, रे भइया बदरा!
नइँ पानी हे, नइँ कादो हे,
ठनठन ई सावन-भादो हे।
धरती-धान-किसान सभे रे,
टुकुर-टुकुर अस्मान तके रे!
जमाखोर सब मउज मनइतन,
छोटजना पर खतरा।
करनी कुछ नइँ, छूछ देखावा,
जइसे ढोंगी साधू बाबा।
गरजऽ हें तूँ झूठ-मूठ के,
मलकऽ हें तूँ झूठ-मूठ के।
धनखेती सब मरे पियासल,
खूखा अहरा-पोखरा।
भाय छोटका दिल्ली धइलक,
आठ कमयलक, साठ गँवइलक।
बरिस दिना पर आवऽ हे ऊ,
उल्टे आँख देखावऽ हे ऊ।
बेच-खोचके फूँके खातिर
माँगऽ हे ऊ बखरा।
दम्मा से बेदम हे दादी,
माथा पर बहिनी के सादी।
रोज महाजन पइसा माँगे,
मुँहजुबानी इज्जत धाँगे।
कउँची खाएब, कउँची पीअब,
आउ देब का ओकरा।