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धरती पर कवि (तीन) / कुमार कृष्ण
Kavita Kosh से
सूख जाएँ यदि धरती के पोखर
मैं आँखों में बचे पानी से
सींच लूँगा कविता की जड़ें
पक्षी आएँ
बनाएं कविता के पेड़ों पर अपने घर
बस जाए मधुमक्खियों का छोटा सा कुनबा
शायद इसी तरह बचा रहे-
धरती पर संगीत
बची रहे धरती पर मिठास
डराती है मुझे नींद में भी-
राजा की तलवार
कैसे बचाऊँ शब्दों का परिवार
कैसे बचाऊँ कविता का जीवन
परेशान करते हैं बार-बार ये सवाल
फिर भी बार-बार बोता हूँ-
कविता के बीज इस धरती पर।