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धरती पर पहले-पहल / विपिन चौधरी
Kavita Kosh से
एक तरफ की रोटी को
थोडा कच्चा रख
दूसरी तरफ को
थोडा जायदा पका कर फूली हुई रोटी को बना कर एक स्त्री
अनजाने में ही संसार की पहली गृहस्थन बन गयी होगी
जिस प्राणी की आँखों में पहले-पहल नग्न शिला देख
गुलाबी डोरों ने जन्म लिया होगा
उसे पुरुष का नाम दे दिया गया होगा
जो अपने मन-भीतर उठती सीली भांप
में यदा-कदा सुलग उठा हो
उसने ही आगे चल कर
प्रेम की राह पकड़ ली होगी
धरती ने
मनुष्यों की इन कोमल गतिविधियों पर खुश होते हुए
अपने सभी बंद किनारे खोल दिए होंगे
फिर एक दिन
जब पुरुष,
स्त्री को चार दीवारी भीतर रहने को कह
अपने लिए यायावरी निश्चित कर
बाहर खुले आसमान में निकल आया होगा
तब धरती चाह कर भी अपने खुले हुए
किनारों को समेट ना पाई होगी