भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धरती पोढ भायला / सांवर दइया
Kavita Kosh से
धरती पोढ भायला
आभो ओढ भायला
ऊपर तो पळकै तन
हेठै कोढ भायला
मिनख मारण री अठै
माड़ी होड भायला
म्हांरा गिटग्या म्हांनै
भूल्या कोड भायला
कीं कर दिखा अबै तो
बातां छोड़ भायला