भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धरती मा / भंवर कसाना
Kavita Kosh से
नीं बणै
नीं बणै, धरती मा
बठै
जठै री नारी
भोग अर वासना रै
चस्मै सूं देखी जावै
अर जठै रा टाबर
ममता रो पाठ
आया रै पालणै सीखै
धरती तो बठैई मा है
जठै
कोयी रामायणी सीख
ममता रो गास्यो
देती कैवे-
‘जननी जन्मभूमिष्च
स्वर्गादपि गरीयसी’।