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धरती सुकी कोनी हुवै / मदन गोपाल लढ़ा
Kavita Kosh से
म्हारी मायड़।
थूं धरती है
म्हैं जाणूं
धरती सूकी कोनी हुवै।
थारै अंतस में
जीवै
केई-केई नद्यां
हेत री सुरसत जिंयां।
थारी वाणी रा रूंख
घणा सांतरा
जकां री छिंया में
रचै-बसै
थारा जायोड़ा
टाबर-टींगर।
थारी जूण
एक तप है
जिण रो तेज
इण आभै सूं ऊचों है।