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धरती / ओम पुरोहित कागद
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धरती !
तूं कदै‘ई करती
सिणगार
बेसुमार:
कूमटै
खेजड़ी
बोअटी ऊपर होंवता
हर्या काच्चा पŸाा
जाणै कचनार!
थारी निजरा सामी
होयो है अनाचार
बता!
कुण राखस री बकरी
चरगी
थारां हरियल संसार?