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धरम अर धरती / राजू सारसर ‘राज’
Kavita Kosh से
लोग
धरम बेच खावै
अधरमी बणैं
पण अै भूखा नीं
धाप्योडा है।
भूखा बेचै तो सांसौ नीं
अै कुकरमी
करै कुकरम
धरम री ओट में
कुटेवी अर छळिया।
बेच’र निज रौ धरम।
घणा ऐब पाळै
करै काळा करम
सुख रा अलेखूं साधन
उपजावण सारू
कूड रा बौपारी
धोळी चामडी काळो लोई
मानखै रै बीच खोदै खाई
मानखै रै लोई रा दाग
धोवै सोरमी साबणां सूं
चै’रे उपर कळखारी
मुळकाण लियां।
लोगां नै भरमावण सारू
अैक दूजै रास गुणगान/काट
अै काळी भैडां,
कुण बचासी मानखै नैं
आं पीवणां सूं
कोई निगै नी आवै
आ धरती आं रै जीव नैं रोवै।
लागै धरती माथै
मिनखपणों मिटग्यो।