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धरम पुत्र / जय जननी ने भारत माँ

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रचनाकार:                  

बग़ावत का खुला पैग़ाम देता हूँ जवानों को.
अरे उठो उठ कर मिटा दो तुम ग़ुलामी के निशानों को.
जय जननी जय भारत माँ ...

उठो गंगा की गोदी से, उठो सतलुज के साहिल से.
उठो दक्खन के सीने से, उठो बंगाल के दिल से.
निकालो अपनी धरती से बिदेशी हुक्मरानों को.

उठो उठ कर मिटा दो तुम ग़ुलामी के निशानों को.
जय जननी जय भारत माँ ...

ख़िज़ाँ की क़ैद से उजड़ा चमन आज़ाद करना है.
हमें अपनी ज़मीं अपना चमन आज़ाद करना है.
जो ग़द्दारी सिखायें खीँच लो उनकी ज़बानों को.

उठो उठ कर मिटा दो तुम ग़ुलामी के निशानों को.
जय जननी जय भारत माँ ...

ये सौदागर जो इस धरती पे क़ब्ज़ा कर के बैठे हैं.
हमारे ख़ून से अपने ख़ज़ाने भर के बैठे हैं.
इन्हें कह दो के अब वापस करें सारे ख़ज़ानों को.

उठो उठ कर मिटा दो तुम ग़ुलामी के निशानों को.
जय जननी जय भारत माँ ...

जो इन खेतों का दाना दुश्मनों के काम आना है.
जो इन कानों का सोना अजनबी देशों को जाना है.
तो फूँको सारी फ़स्लों को जला दो सारी कानों को.

उठो उठ कर मिटा दो तुम ग़ुलामी के निशानों को.
जय जननी जय भारत माँ ...

बहुत झेलीं ग़ुलामी की बलायें अब न झेलेंगे.
चढ़ेंगे फाँसियों पर गोलियों को हँस के झेलेंगे.
उन्हीं पर मोड़ देंगे उनकी तोपों के दहानों को.

उठो उठ कर मिटा दो तुम ग़ुलामी के निशानों को.