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धरले रही गेलै बात / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो

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देखतें-देखतें बही गेलै दिन,
धरले रही गेलै बात!

गल्ली-कोन्टा में धुरदा के खेल,
छन्हैं-छन्हैं झगड़ा छन्हैं-छन्हैं मेल,
तेजी केॅ भूख-प्यास सरगद लौलीन,
दुपहरिया-सांझ-भोर बेल-बबुर-नीम।

कोंढ़ी भेलैं फूल, फूल ओसंे नहाय
चढ़ी गेलै देव कोय भेलै सहाय!

के गेलै कहाँ, रहलोॅ कहाँ के
कत्तेॅ बेर कलभी केॅ झड़ी गेलै पात।
धरले रही गेलै बात!

जिनगी के कत्तेॅ नी माया अरमान
उमड़लै-उमड़लै भरलै असमान
भै गेलै छुच्छँ कोय मेघँ रं बरसी केॅ
बालू पर, रही गेलै खेत-पाँत तरसी केॅ
सपना भेलै सपनोॅ, आय ठाय-ठाय चोट
जन्नेॅ जा तन्नेॅ छै अट्टट कचोट

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सहेजलोॅ मंसूवा भेलै कभात!
धरले रही गेलै बात!

उमंग काम करै के गेलै भोथराय,
जेना बालू में पानी के बुद बिलाय,
देखोॅ यै रस्ता के, भूल-भुलैया महा
पहुँचना छेलै कहाँ, पँहुची गेलिये कहाँ!

जेना कोय धुरंधर इन्द्रजाली फेर
बिसरलै सुरता सब रहलै नै टेर
खुललोॅ छै आँख तेॅ जहाँकरोॅ ताँहीं
जेना सपना में कटी गेलै रात!

धरले रही गेलै बात!