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धरातल संवेदन का / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'

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अच्छे और बुरे की किसको इस युग में पहचान नही है ?
धूप और शीतल फुहार से पत्थर भी अज्ञान नहीं है ।

एक धरातल संवेदन का व्याप रहा है कण-कण तक में-
फूल-फूल में कली-कली में क्या करूणा का स्थान नही है ?

संघर्षों, युद्धों ध्वंशों की कथा सराही नही किसी ने,
मानवता की मधुर धरोहर किस युग की मुस्कान नहीं है ?

कभी धर्म ने और कभी तलवारों ने गाडी हाँकी है-
मगर आज के युग में रूपियों किस रथ का रथवान नहीं है ?

बहे जा रहे पछुआ प्रेरित निजी प्रगति के मरू प्रवाह में,
किन्तु सिमटते हुए नेह नातों का कोई ध्यान नहीं है ।

जिसने वर्षों पाला-पोसा अपनी छाती से चिपटाकर
आज अभागी उस ममता का तिलभर भी सम्मान नहीं है ।