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धरा इरा है / केदारनाथ अग्रवाल
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धरा इरा है
और धरा से उपजी वाणी
स्वयं इरा है ।
यही इरा है मेरी,
यही इरा है मेरी कविता,
जो तुम मुझसे पाते —
अपनी कह कर
हृदय लगाते !
26 जुलाई 1980