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धरा और मैं / पृथ्वी: एक प्रेम-कविता / वीरेंद्र गोयल

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धरा खड़ी है
मैं भी अड़ा हूँ
समय की बर्फ में
जमा एक क्षण
धरा खड़ी है
मैं भी अड़ा हँू
ईश्वर
पशोपेश में है
क्या करें
गुरुत्वाकर्षण
का?