धरे अनेकों स्वांग पेट की खातिर खोटे,
केते मूढ़ असंत बने मायावी मोटे।
पाप ताप संताप चढे़ सिर काल नचाये,
झूंठे नमक हराम नहीं हरि के गुण गावे।
बिता रहे उमर बुरे धरे ठगन का वेष,
शिवदीन बचावें रामजी ब्रह्मा विष्णु महेश।
राम गुण गायरे।
धरे अनेकों स्वांग पेट की खातिर खोटे,
केते मूढ़ असंत बने मायावी मोटे।
पाप ताप संताप चढे़ सिर काल नचाये,
झूंठे नमक हराम नहीं हरि के गुण गावे।
बिता रहे उमर बुरे धरे ठगन का वेष,
शिवदीन बचावें रामजी ब्रह्मा विष्णु महेश।
राम गुण गायरे।