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धर्म की है ये दुकाँ आग लगा देते हैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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धर्म की है ये दुकाँ आग लगा देते हैं।
सिर्फ़ कचरा है यहाँ आग लगा देते हैं।
क़ौम उनकी ही जहाँ में है सभी से बेहतर,
जिन्हें होता है गुमाँ आग लगा देते हैं।
एक दूजे से उलझते हैं शजर जब वन में,
हो भले ख़ुद का मकाँ आग लगा देते हैं।
नाम नेता है मगर काम है माचिस वाला,
खोलते जब भी ज़बाँ आग लगा देते हैं।
हुस्न वालों की न पूछो ये समंदर में भी,
तैरते हैं तो वहाँ आग लगा देते हैं।
आप ‘सज्जन’ हैं मियाँ या कोई चकमक पत्थर,
जब भी होते हैं रवाँ आग लगा देते हैं।