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धर्म रोॅ रक्षा मंगलकारी होय छै / सुरेन्द्र प्रसाद यादव

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पाण्डव वनवासी जीवन, काटी रहलोॅ छेलै
व्यास केरोॅ प्रेरणा सेॅ, भाय सेॅ आशा पावी केॅ ।

अर्जुन तपस्या करै लेली, वन निकली गेलै
तपस्या सेॅ शिव अभिभूत होय गेलै

आरोॅ आपनोॅ पाशुपतअस्त्रा प्रदान, अर्जुन केॅ करी देलकै ।
इन्द्र आरोॅ अन्य लोकपालंे, अर्जुन केॅ दिव्यास्त्रा दै देलकै ।

देवता सिनी केरोॅ शत्राु, निवातकवच असुरोॅ पर, आक्रमण करी देलकै,
हौ असुरोॅ के देवता केॅ, जीतै नै पारलकै ।

असुरोॅ के बार-बार आक्रमण सेॅ, देवता संत्रास्त होय गेलोॅ छेलै
तबेॅ अर्जुन आपनोॅ बाणोॅ सें, असुरोॅ केॅ परास्त करी देलकै ।

बेचैनी आरोॅ व्याकुल होय केॅ, रणक्षेत्रोॅ सेॅ भागी गेलै
अर्जुन असुरोॅ पर विजय पावी गेलै ।

अमरावती मेॅ देवता सब नें, हिनकोॅ भर ठेहुना स्वागत करलकै
देवराज इन्द्र हिनका साथ लै लेलकै, आपनोॅ सिंहासन पर बैठैलकै

स्वर्ग रोॅ श्रेष्ठतम गंधर्व गणोॅ सेॅ वीणा नृत्य सेॅ अर्जुन केॅ रिझावै लेली
है नाटक त्राटक रोॅ खेल रचने छेलै ।

अर्जुन के निवास स्थान पर, उपस्थित होय गेलोॅ छेलै
उर्वशी केॅ देखी केॅ शय्या सेॅ उठी केॅ, कर जोड़ने खड़ा होय गेलोॅ छेलै।

मस्तक झुकाय केॅ प्रणाम करलकै
अर्जुन बोललैµमाता

है निशि भगे रात्राी मेॅ आपनें रोॅ की सेवा करियै
सुनी केॅ उर्वशी भौंचक्की, तत्क्षण बोललै, हम्में आपने पर आसक्त छियै।

हमरा देवराज रोॅ आदेश मिललोॅ छै
अर्जुन बोललैµआपने गुरुकुल रोॅ जननी छेकियै

आपने रोॅ दर्शन माता रोॅ समान छियै
आपनें रोॅ चरण देखी केॅ हम्में धन्य छियै ।

उर्वशी समझैलकैµपार्थ । है धरा नै छेकै बल्कि स्वर्ग छेकै
अप्सरा केकरोॅ नै माता, नै बहन, नै पत्नी ।

स्वर्ग मेॅ आवै वाला
पुण्य कर्म करै वाला ।

उपभोग करै रोॅ हक बनै छै
हमरोॅ आरजू स्वीकार करवै ।

धर्मज्ञ अर्जुन कामदेव केॅ
चित्त स्पर्श नै करै लेॅ देलकै ।

आपनोॅ बखान करलकै
कुंती माधुरी हमरोॅ माय छेकै ।

इन्द्राणी शची देवी माता छेकै
अर्जुन बोललै उर्वशी सेॅ पुत्रा समझी केॅ ।

हमरा पर आग्रह करोॅ
उर्वशी तमतमाय केॅ बोललै ।

यैन्होॅ उपेक्षा कोय ऋषि-मुनि
दम-खम नै राखै छेलै ।

उर्वशी विह्नल होय केॅ साफ-साफ
आपनोॅ अपमान समझै मेॅ ।

तनियोॅ टा देर नै करलकै
क्रोधोॅ मेॅ आवी केॅ शाप देलकै ।

नापुंसक बनी केॅ हमरोॅ प्रार्थना
स्वीकार नै करलकै ।

तोरा हिजड़ा बनी केॅ
स्त्राी केरोॅ बीचोॅ मेॅ नाचै गावै लेॅ ।

एक साल समय बितावै लेॅ लागत्होॅ
क्रोध सेॅ उर्वशी चललोॅ गेलै

अर्जुन केॅ अन्यायपूर्वक शाप देलकै ।
जबेॅ जावेॅ लागलै, उर्वशी क्रोधित होय केॅ

देवराज केॅ सब बात मालूम होय गेलै ।
अर्जुन पर प्रसन्न होय केॅ दाद देलकै ।

अर्जुन सेॅ बोललैµधनंजय
धर्म निभाय वाला पर विपत्ति नै आवै छै ।

खुदा नेॅ खास्ते आवै छै तेॅ
हौ मंगलकारी मेॅ तब्दील होय जाय छै ।

शाप एक वर्ष तक रहलै
अज्ञात वासोॅ मेॅ एक साल ।

कोय हिनका पहचाने नै पारतै
उर्वशी रोॅ शाप ।

तोरोॅ वरदानोॅ मेॅ तब्दील होय जैत्होॅ
आपनै निष्कलंक छियै ।

पुरुषार्थ सेॅ ओत-प्रोत छियै
आपनें केॅ चिंता रोॅ कोय बात नै छै ।