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धर ध्यान रटो रघुबीर सदा धनुधारी को / प्रतापकुवँरि बाई

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धर ध्यान रटो रघुबीर सदा धनुधारी को ध्यान हिये धर रे।
पर पीर में जाय कै बेग परौ करतें सुभ सुकृत को कर रे॥
तर रे भवसागर को भजि कै लजि कै अघ-औगुण ते डर रे।
परताप कुमारि कहै पद-पंकज पाव धरी मत बीसर रे॥