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धर परमपिता का ध्यान, द्रोपद चाली / ललित कुमार

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धर परमपिता का ध्यान, द्रोपद चाली,
सुमरे सूर्य भगवान, बोतल ठाली,
मै हांगा करकै, गैर कै घर नै घाली || टेक ||

मनै देख्या थारा राज, आज भूमा जी,
हुई सोच शरीर मै, उठ रहया धुम्मा जी,
न्यूं आवै घंणी याद, मेरी सूमा जी,
या धोखे के म्हा फंसगी, राणी रुमा जी,
यो कीचक दान्ना, बणकै बैठ्या बाली ||

मै मन म्य रटू दिन-रैन, त्रिलोकी नाथ,
करियो ध्यान आप, दियो मेरा साथ,
मेरा लरजै हिया, थर-थर काम्पै गात,
उस भर्गु जी नै दी मार, विष्णु कै लात,
श्राप के कारण रावण नै, सीता ठाली ||

इसे-इसे कर दिए, एक पल मै ढेर,
या सिंहनी सुन्नी, मेरे रुके पिंजरै शेर,
या चढ़ी करड़ाई, होती आवै अंधेर,
हे! भगवान पड़ी गाज, बचाल्यो फेर,
दिया दुर्योधन नै बनवास, नाश की शाली ||

सुदेष्णा नै करया, मदिरा का बहाना,
मनै रोज बुलावै महल मै, कीचक दान्ना,
रटै ललित गावै गीत, इब कृष्ण कान्हा,
सत्संग सभा मै, चाहिए सुर का गाणा,
मेरे मात-पिता नै, मै लाड-लडाकै पाळी ||