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धवल दाढ़ी में बघाटी बाँकपन / कुमार कृष्ण

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' गिरफ़्तार कर लो उसे
तहस-नहस कर दिया है उसने काव्य-शास्त्र
जला डाला है कविता का घर
वह है घटाटोप बिम्बों का कवि'

रुको
मैं उसकी जमानत देने आया हूँ
नोट करो मेरा बयान-
कितनी अजीब बात है
हमने कभी भी ठीक से नहीं समझा उस आदमी को
जो लिख रहा था हर क्षण
आने वाले कल की किताब
रो रहा था बार-बार
दरख्तों के कटे ठूंठ पर
रो रहा था बगदाद और अफ़गान की तक़दीर पर
उसके ज़हन में घूम रही थी लगातार
पठानी कुल्लेदार पगड़ियाँ
जिसे सजाना चाहता था वह-
अपने धवल बालों पर बड़े पिता कि तरह

वह जब भी आता है मेरे पास-
उसके जूते कभी नहीं निकालते अपने मुंह से आवाज़
वह आता है जैसे खेतों में आते हैं खामोश
चुपचाप, खामोश, बिना किसी शोर के
अपनी धवल दाढ़ी में

मत कहो उसे बूढ़ा आदमी
उसकी आंखों में आज भी बरकरार है-
लोर्का के 'खूनी विवाह' की चमक
वह है शांगड़ी का नेरुदा, जाखू का रिल्के
तारादेवी का लारेंस, नाभा का मुक्तिबोध
सन्दल हिल का गुंटर ग्रास

उसकी कविताओं में ज़िन्दा है-
बघाटी बांकपन, मुक्तिबोधी तड़प
नागार्जुनी ठस्का
लोर्की लालित्य, निराली ऊर्जा

देखो, थोड़ा ध्यान से देखो-
कितनी नफासत से उतारता है वह
अर्थों की छतरियाँ लिए शब्दों को काग़ज़ के पृष्ठों पर
कैसे बुनता है रचना का मोजेक

हमने कभी नहीं सोचा उस शख़्स के बारे में
ले आएँ उसे अपने घर
बैठाएँ बहुत पास
सुनें इतमीनान से उसके मुंह से
अनगिनत बीज वाली कविताएँ

वह जानता है बखूबी
घर एक यात्रा है
इसीलिए नहीं जाता रात उतरने पर किसी के घर
वह जानता है-
उसकी उम्र के तमाम लोग
रोते हैं रात-रात भर
कामकाजी बहुओं के पंजाबी ताने सुन कर
वह आज भी सोता है अपने कमरे में
फ्रायड और युंग की तस्वीरों के साथ

यह सही है
उसने तहस-नहस किया है भारतीय काव्यशास्त्र
जला डाला है पुराना कविता का घर
तुम्हारी कोई भी धारा नहीं कर सकती उसे गिरफ़्तार
उसने बना लिया है कविता का नया बीजगणित
उसकी कविता के घर में हैं बेशुमार दरवाजे-खिड़कियाँ

वह अब तक नहीं भूला-
ऊँचे खम्भों से उतरने की कला
उसके पुरखों ने जीते हैं-
बघाटी राजा से ज़मीन के मुकद्दमें
वह जानता है बिना वीजा के पूरी दुनिया घूमना
पिछले पचास बरसों से
घूम रहा है बिना पारपत्र के
सोलन, चण्डीगढ़, दिल्ली, अहमदाबाद के बाद
स्पेन, फ्रांस, अमेरिका और रूस
में भी हैं उसके कई-कई गुप्त घर

वह है श्रीनिवास श्रीकांत
कहाँ-कहाँ ढूंढ़ोगे उसे
खत्म हो चुका है तुम्हारा
पचास साल पुराना गिरफ़्तारी वारंट
कुछ तो शर्म करो
दिनकर सम्मान से अलंकृत कवि को
गिरफ्तार करने की जगह-
अरे पुरस्कृत करो
मत छेड़ो उसे
न करो ध्यान भंग
सुन सकते हो तो चुपचाप सुनो-
बादल-राग, अग्नि-राग
वायु-राग, जरायु-राग
प्रकृति-राग, पृथ्वी-राग
आकाश-राग, पाताल-राग
लोक-राग, लोक-राग
लोक-राग, लोक-राग।