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धागे से भी मही़न रिश्ते को / मनीष यादव

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धागे से भी मही़न रिश्ते को
बचाए रखने की शिक्षा कौन देता होगा?

दुखों के स्वरूप की चित्रकारी से
ख़ुद का मन बहलाती औरत ,
स्वयं अपने देह की पीड़ा को कभी नहीं बुनती।

सोचता हूँ
औरत को अच्छाई की मूरत किसने बनाया होगा?
गाँव के कुएं के पास फुसफुसाती उन्हीं कुछ औरतों की मंडली ने;

खाने का स्वाद-अच्छा होना चाहिए
सौंदर्य और रूप-अच्छा होना चाहिए
शादी के बाद नौकरी-चरित्र अच्छा होना चाहिए
अच्छा चरित्र-जो औरतें शादी के बाद नौकरी पर नहीं जाती।

मन का द्वंद
किसी बिंदु पर समाप्त नहीं हो पाता!
प्रश्न यह भी है कि
कौन गले लगाता होगा
उन संवेदनशील स्त्रियों को दु:ख के समय?

जो जीवन स्वप्न से ज्यादा यह सोचने में व्यस्त है
कि उसका घर , अब घर नहीं नैहर हो चुका।

संभवत: हमारा समाज एक खेत है
जो औरत को फ़सल समझता है
तथा इसके बस हिस़्से करना चाहता है,

फिर हर कोई अपनी मुट्ठी खोलता है
और ले जाता है उसे अपनी”कोठी”भरने को,
विवाह के नाम पर।

हे स्त्री!
मैं तुम्हारे जीवन के संघर्ष का
एक कोना भी नहीं हो सकता!

किंतु
मैं विनती करता हूँ हर पुरुष से
कि विवाह के उपरांत वो तुम्हें दे ,
विदाई के समय तुम्हारी माँ द्वारा
दिए गए खोईंछे भर चावल (धान) जितना प्रेम हर रोज।