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धातुओं का गलता सच / विजेन्द्र

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हमारा प्यार —
सफ़ेद बादल नहीं
जिसे हवा चाहे-जिधर
उड़ा ले जाए
अब वह धातुओं में गलता सच है
जिसकी बंदिशें
वक्त के सीने पर
उभरी दिखती हैं
जैसे रेत में सफेद जर्रे
और खुले दिल की तरह आसमान में
जाने कितने टिमटिमाते तारे ।

अब मेरे लिए
प्यार एक ऐसा महकता लम्हा है
जो ज़िन्दगी में सिर्फ़ एक बार
और सिर्फ़ किसी एक को ही
नसीब होता है
इसका रास्ता सीधा-सादा नहीं है
तुम ख़याल रखो
वसन्त के पहले
पतझर आता है
और दरख़्त को
अपनी हर पत्ती उसे
दे देनी पड़ती है ।

यही तो वह खूबी है
जो जड़ें उस से
अपनी घुटन की
कोई शिकायत नहीं करतीं
आगे कोई सीधा रास्ता नहीं है
मोड़ भी नहीं हैं
और सीधी चढ़ने को चट्टानें हैं

तुम शयद नहीं जानती
मौसमों ने हमारे प्यार से
जो अपने डैने रंगे थे
वे अब धुल चुके हैं
यह अभी भी नहीं समझ पाया
यह कील सी क्या चुभ रही है
दर्द मुझे ही सहना है ।

उसके बताने के लिए
मेरे पास न अलफ़ाज़ हैं
और न वह ताक़त
क्योंकि जब भी चाहा कहना
कह ही नहीं पाया
और किस से क्यों कहूँ
जिसे उसमें कोई दिलचस्पी ही नहीं
 
काश ! तुम इसे
समझ पाती
तो तुम्हे अपने 'होने' का भी
नया एहसास होता ।