भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धान-कोदी, राहेर, जुवारी-जोंधरी कपसा / कोदूराम दलित
Kavita Kosh से
धान-कोदी, राहेर, जुवारी-जोंधरी कपसा
तिली, सन-वन बोए जाथे इही ॠतु-मां ।
बतर-बियासी अउ निंदई-कोड़ई कर,
बनिहार मन बनी पाथें इही ॠतु मां ।।
हरेली, नाग पंचमी, राखी, आठे, तीजा-पोरा
गनेस-बिहार, सब आथें इही ॠतु मां ।
गाय-गोरु मन धरसा-मां जाके हरियर,
हरियर चारा बने खायें इही ॠतु मां ।।