भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धान रोपै छै रोपनियाँ झुकी-झुकी / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धान रोपै छै रोपनियाँ झुकी-झुकी
झुकी-झुकी हो झुकी-झुकी
धान रोपै छै....
छोटकी रोपनी बड़की रोपनी
मोटकी आरू पतरकी गे
गारी पढ़ै छै सिरैतनी बिछी-बिछी धान रोपै छै....
खेतोॅ के आरी पर बैठलोॅ छै किसनमा
अटिया छीटै छै मजदूर सगर दिनमा
धान रोपोॅ हे रोपनियाँ विरची-विरची-धान रोपै छै....
सीता रोपल्हेॅ, बौना रोपल्हेॅ रोपल्हेॅ धान केशौर हे
कुमोद बासमती रोपिये लीहो
तखनी काटिहोॅ रोपनियाँ झूमी-झूमी धान रोपै छै....