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धार-धार प्रेम की कथा कही / आशुतोष द्विवेदी
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धार-धार प्रेम की कथा कही,
आँसुओं ने बात और क्या कही !
भूल गए जीत, हार, जन्म और मरण
साँवरे की वंशी का कर लिया वरण
प्रेम-प्रेम बस हृदय में और कुछ न था
एक रूप कृष्ण-राधिका हुए यथा
इस प्रकार चक्षुओं से झाँकते हुए,
गोपियों की विरह-वेदना कही
प्रेम का पवित्र रूप भंग कर दिया
लांछनों ने प्रेम को अपंग कर दिया
प्रेम को भी एक खेल जानने लगे
लोग भ्रम भरे विचार मानने लगे
रोकने की लाख कोशिशों के बाद भी
बार-बार एक ही व्यथा कही
प्रेम ब्रह्म का दिया अनूप दान है
प्रेम परम इष्ट का अखंड ध्यान है
प्रेम का हमें ये पुरस्कार क्या मिला !
दर्द का अटूट एक सिलसिला मिला
कष्ट में भी है प्रसन्नता छिपी हुई,
बात यही गीत में समा कही