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धार तुम, मैं किनारा प्रिये / पीयूष शर्मा
Kavita Kosh से
तुम प्रणय की अमर साधना,
मैं समर्पण तुम्हारा प्रिये
अब निकट है मिलन की घड़ी,
धार तुम मैं किनारा प्रिये।
सूत्र मंगल तुम्हें बाँधकर
आत्मा को विवाहित करूँ
रंग काली घटा का छटे
मांग जब मैं तुम्हारी भरूँ
प्रेम मंदिर बनाकर करें
साथ मिलकर गुजारा प्रिये।
नैन की देहरी पर सजे
स्वप्न आभूषणों की तरह
तोड़कर लाज की डोरियाँ
चूम लो तुम मुझे हर जगह
आँसुओं से सनी चाँदनी
अब नहीं है गवारा प्रिये।
राज दरबार को त्यागकर
बढ़ चलें प्रेम पथ की दिशा
गेरुए रंग में तुम रंगो
जुगनुओं से सजी हो निशा
पायलों संग खनके सदा
स्वर्ण झूमर तुम्हारा प्रिये।