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धार / पूरन मुद्गल
Kavita Kosh से
तुमने
उस छुरी की धार
इतनी तेज़ क्यों कर दी
जिससे कट गया गला
गला कटने की शिकायत कौन करता-
रोज़ कटते हैं गले
लेकिन वह धार इतनी पैनी थी
कि उससे कट गए
सपनों के रूपहले तार !
चाकू हो
या ख़ूनी तलवार
या फिर कोई भी हथियार
सभी चाहते हैं तेज़ धार
तुम्हारा क्या बिगड़ता
लोग इतना ही कहते
धार तेज़ नहीं थी।
बस इतनी-सी बात से डर गए
घुमा दिया सान का पहिया
और कर दी इतनी तेज़
उस छुरी की धार !
काट दिया किसी का सिर,
कर दी कोई उंगली घायल,
सिर केवल सिर नहीं होता
उसके साथ एक विचार कटता है
उंगली अकेली नहीं कटती
उसके साथ
दिशाबोध का ख़ून होता है!
धार तेज़ करना
मेरा पेशा है
मेरी रोज़ी है
क्या काटना
उनका भी पेशा है ?
वे अपना पेशा
क्यों नहीं बदल लेते?
मैं तो ढूँढ़ लूँगा कोई और काम !