भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धावो कृष्ण मुरारी / महेन्द्र मिश्र
Kavita Kosh से
धावो कृष्ण मुरारी।
कहवाँ बिलमे लें गिरधारी हो,
धावो कृष्ण मुरारी।
अब पत जात हमारी हो,
धावो कृष्ण मुरारी।
नरसिंह हो के प्रहलाद् उबारे,
खंभा फारी हिरनाकुस मारे,
तारे हो गउतम नारी हो,
धावो कृष्ण मुरारी।
द्रोपदी नारी के लाज बजाए,
ग्राह के मारी गजराज के उबारे,
अबकिर के बेरिया हमारी हो,
धावो कृष्ण मुरारी।
सबका बेर प्रभु देर ना लगायो,
कौन-सी चूक हमारी हो,
धावो कृष्ण मुरारी।
कहत महेन्द्र प्रभु दरस दखिा जा,
जनम-जनम के पाप मिटा जा,
अरजी करत हूँ पुकारी हो,
धावो कृष्ण मुरारी।