धाह धधक रहलउ हे भइया! / सतीश मिश्रा
धाह धधक रहलउ हे भइया! दहकित दिन दुपहरिया में।
गिद्ध निअन हउ चोच चुभावित धूप धरा के थरिया में।
दह-बह जब बरखा कर देलक तब अकुता के राज बदलती
सिंहासन पर जाड़ा बइठल, शुरू-शुरू तो बड़ अगरइली
बाकी ओहू नजर बदल के लगल देह पर बरफ गिरावे
ओकरो राज उलट देली तब गरमी आके लगल सिझावे
अब अरदसिया लगवे जाऊँ कह केकर कचहरिया में।
गिद्ध नियन हउ चोंच चुभावित धूप धरा के थरिया में।
गाँव के उत्तर छउरी धैले कनेयाइ के डोली जा हे
लाल ओहार तरे ई सूरुज बनल आग के गोली जा हे
चलल पसेना, भींजल अबटन, भींजल राता-गोटा
कमलनाल अइसन अंगुरी में डोले पंखा मोटा
खनक के चूड़ी कहे कि ‘कहरा! डोली रोक छहुँरिया में’।
गिद्ध निअन हउ चोंच चुभावित धूप धरा के धरिया में।
गाय-बैल हीले पर थसरल, कादो में भइँसी-भँइसा हे
बाल्टी पर बाल्टी पी-पी के थ्रेसर में गोहुम मइँसा हे
मट्ठा, जीरा, प्याज, पुदीना अमझोरा आउ सौंफो लहकल
उक्खिल बिक्खिल कमिआँ मालिक खरिहानी तावा बन तलफल
लूक खेलित हे सेल कबड्डी सउँसे चौंर बधरिया में।
गिद्ध निअन हउ चोंच चुभावित धूप धरा के धरिया में।
लहकल मट्टी के भित्ती हे, खटिया, तकिया आउ बिछौना
हाय! जुगाली बन्द कर देलक मिरगा-मिरगी, छौनी-छौना
बर के छहुँरी, कच्चा कुइआँ तितकी फेंक रहल हे
साँवर चमड़ा पर अपना के सोना सेंक रहल हे
कोना-कोना खउल रहल हे आज आग के दरिया में।
गिद्ध निअन हउ चोंच चुभावित धूप धरा के धरिया में।