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धिनतका / श्रीप्रसाद
Kavita Kosh से
पेड़े खड़े हैं जंगल में, धिनतका
पहलवान हैं दंगल में, धिनतका
फूल पेड़ पर आएँगे, धिनतका
पहलवान लड़ जाएँगे, धिनतका
दुश्मन सदा डराता है, धिनतका
मगर हार भी जाता है, धिनतका
मैं चंदा पर जाऊँगा, धिनतका
तीन माह में आऊँगा, धिनतका
आज छमाछम नाचो जी, धिनतका
अच्छी कविता बाँचो जी, धिनतका
हाथी चलता डगर-डगर, धिनतका
जाता है वह अपने घर, धिनतका।