दान-दहेज की प्रथा और दुलहा खोजने की परेशानी से ऊबकर पिता का यह कहना कितना मार्मिक है कि विधाता बेटी का जन्म कभी नहीं देना; क्योंकि बेटी के जन्म से उसके विवाह के समय बहुत कष्ट होता है। पिता चारों ओर ढूँढ़ आता है, लेकिन योग्य वर नहीं मिलने के कारण निराश हो जाता है। वह बेटी के पूछने पर कहता है- ‘बेटी, सब जगह ढूँढ़ा, लेकिन योग्य लड़का नहीं मिला। एक मिला भी, तो वह तपस्वी और भिखमंगा था।’ बेटी का यह कहना कितना उपयुक्त है- ‘पिताजी, आपके लिए वे भले ही तपस्वी और भिखमंगे हों, परन्तु मेरे लिए तो वे भगवान के तुल्य हैं।’ इस उत्तर से भारतीय नारी की सहज गरिमा प्रकट होती है।
धिया के जलम जनु देहु बिधाता, सेहो देइय<ref>देता है</ref> बड़ जे संताफ<ref>दुःख; संताप</ref> हे॥1॥
दिलबा बेदिल भेलै मनमा झमान<ref>चिंतित</ref> भेलै, दिनो दिन देह झाँझरि<ref>जर्जर</ref> हे।
बाबा के हबेलिया में आलरी झालरी, ओहो पैसी बहैछै<ref>बहती है</ref> बतास हे॥2॥
ओहि तर आहो बाबा पलँग ओछाबल<ref>बिछाया</ref>, घुरुमि नींद लेय हे।
जेहो घर आहो बाबा धिआ जे कुमारी, सेहो कैसे सुतलै निचिंत हे॥3॥
एतना बचन जब सुनलन बाबा, बान्हि लेल लटपट पाग हे।
चलि भेलै आहो बाबा उत्तर दखिन दिस, खोजै धिया जोग बर हे॥4॥
खोजि खाजि घुरि अयला बाबा, पलँगा पर गिरला मुरझाय हे।
उत्तर खोजल बेटी दखिन जे खोजल, खोजि ऐलौं मगहा मुँगेर हे॥5॥
तोहरो जुगुत<ref>योग्य</ref> बेटी बर नहीं पेलौं, पैलौं जे तपसी भिखार हे।
तोरा लेखे आहो बाबा तपसी भिखारी, मोरा लेखे ओहो भगवान हे॥6॥
एक दिस बैठली बेटी से दुलारी बेटी, एक दिस बैठल बेटी बाप हे।
आम पलो<ref>आम्र पल्लव</ref> चढ़ि बैठल जे ओहो बर तपसी, करु बाबा आहो कनिया दान हे॥7॥