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धीरे-धीरे बीती साँझ / दूधनाथ सिंह
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धीरे-धीरे बीती साँझ
धीरे-धीरे डूबा क्षितिज अन्धेरे की लय में
विलय हुआ मैं बैठा वन के बीच
छवि मेरी गुम हुई पत्थरों के
ऊबड़खाबड़पन में, बैठा पत्थर एक
प्रतीक्षा घायल । लहू चन्द्रमा
उठा अचानक बादल का दिल फाड़
हमारे हृदय-देश में हुआ उजाला
गाढ़ा-गाढ़ा मद्धिम-मद्धिम रक्तिम
स्मृति लौटी फिर किसकी
ठगा हुआ मैं
हुआ तिरोहित
पछतावे के अन्धे
तम में ।