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धुँआ (20) / हरबिन्दर सिंह गिल

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हम कोशिश करेंगे, समझ सकें
अर्थ इस धुऐं का
परंतु यह सिर्फ एक शब्द ही नहीं है
ढूंढ सकें , इसे किसी शब्दकोष में ।

यह तो एक विवाद है
इसे हम सामाजिक कहें
या रूप दें धार्मिकता का ।

विवाद को सुलझाने में
एक प्रश्न उठता है
समाज बड़ा या बड़ा धर्म ।

पाऐंगे न समाज, धर्म के बिना कुछ है
और न ही धर्म, समाज के बिना ।

इसलिए दोनों एक दूसरें को
एक दूसरे से बड़ा समझना छोड़ दें
देखोगे मानव धर्म को समझने लगेगा
वह धर्म को मानवता के समीप ले जाएगा ।

मानवता और धर्म के इस मिलन से
समाज बटने से बच जाएगा
इस प्रकार हम सब समझ पाएंगे
अर्थ इस आतंकवाद के धुऐं का